क़यामत ही आई वो आकर मिला है
क़यामत ही आई वो आकर मिला है
मेरी मेज़बानी में उठकर मिला है,
न जंतर मिला है,न मंतर मिला है
तरीक़ा मुझे इससे बेहतर मिला है,
खिलाऊँ मैं क्या प्रेम का फूल कोई
हमेशा ही मन मेरा बंजर मिला है,
जिसे मैंने मरहम लगा के बचाया
उसी हाथ में मुझको खंजर मिला है,
गुनाहों का वो एक ही देवता था
सुधा का ना फिर कोई चंदर मिला है,
क़तरा के चलते थे हम जिससे बाहर
वही शोर घर के भी अंदर मिला है,
नज़र जब भी आया है खिड़की से मेरे
उदासी में डूबा समंदर मिला है,
जो आँखों को मेरी खुशियों से भर दे
कभी कोई ऐसा न मंज़र मिला है,
है मस्ती में डूबा,न ग़म ना खुशी है
मुझे एक ऐसा कलंदर मिला है,
मैं धोखा न खाऊँगी फिर अब किसी से
मुझे दिल के अंदर वो पत्थर मिला है।