क़यामत का दौर…
क्या क़यामत का दौर आया है !
मरघट पर मुर्दों को लाईन में पड़ा पाया है |
अपनों की राख ही मिल जाए अपनों को,
तो लगे है इंसान तरीक़े से मर पाया है |
दफ़नाने को कब्र नहीं मिल पाती है,
जलाने को चिता नहीं मिल पाती है,
बेसहारा ही दम निकला जाता है,
जीने की हवा ही नहीं मिल पाती है |
कौन ले आया था किसी लाश को ?
यह पता नहीं चल पाता है,
किसको दें उसकी जली हुई राख को,
यह पता नहीं चल पाता है !
बस कर ख़ुदा, ईशु, ऐ प्रभु मेरे,
और किस क़दर इम्तेहान लेगा !
सुकून से जीने को तो तरस ही गए हैं
अब क्या मरने भी सुकून से ना देगा
अब क्या मरने भी सुकून से ना देगा..
रितेश श्रीवास्तव “श्री”
ritushriva@gmail.com