कह न पाई,सारी रात सोचती रही
कह न पाई सारी रात सोचती रही।
मै अपने जज्बातों को तोलती रही।।
तुमने कभी न सुना मुझको कभी।
मै तुमसे अपनी बात बोलती रही।
रास्ते में तुमने अकेला छोड़ दिया।
मै तुझे मुड़ मुड़ कर देखती रही।।
तुमने कभी राज ए दिल न खोला।
मैं ही राज ए दिल खोलती रही।।
उम्र का जब आखरी पड़ाव आ गया।
मै ही अपने दिल को नोचती रही।।
रस्तोगी और क्या लिखे दिल की बाते।
मै सोचता रहा,बस कलम लिखती रही।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम