कह क्या लिख दूँ ?
खाली शब्द उकेरने बैठा, कुछ लिखना चाहूँ क्या लिख दूँ।
इस जीवन के उथल पुथल से, कौन सा पल सूना लिख दूँ।।
उस नाविक सी हालत मेरी, जो बीच समंदर हो फंसा हुआ।
साथ डुबाने वाली है लहरें, फिर खुद को कैसे तन्हा लिख दूँ।।
रोशनी से चुभती हैं आँखे, और अंधेरों में होती घुटन है।
अश्क नही बहते हैं तो क्या, गम के गागर सूखा लिख दूँ।।
रिश्तों की मर्यादा है क्या, क्यों अपनो को अपनी कदर नही।
मेड़ जो खुद कि खेत को खाये, इसको कैसे रिश्ता लिख दूँ।।
मूरत की अभिलाषा क्या थी, जिसे था हाँथो से वो गढ़ा।
आज इसे वह खुद ही तोड़े, क्या इसको भी कला लिख दूँ।।
इस जीवन कि आपाधापी में, मिलते व बिछड़ते रहते हैं लोग।
कौन है कितना साथ चला, गिन किसके कदम कितना लिख दूँ।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०२/०३/२०२०)