कहॉं दीखती अब वह मस्ती, बचपन वाली होली जी (गीत)
कहॉं दीखती अब वह मस्ती, बचपन वाली होली जी (गीत)
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1
लिए बाल्टी रंगभरी, पिचकारी भर-भर दौड़ें
जो निकले घर के आगे से, उसे न हरगिज छोड़ें
हफ्ते-भर पहले होली से, शुरू ठिठोली बोली जी
2
बीच-बचाव बड़े करवाते, आपा खोता पुता हुआ
जिसके ऊपर रंग पड़ा, वह लगता जैसे लुटा हुआ
नुक्कड़ पर शैतानी करते, सूरत भोली-भाली जी
3
रंग छुड़ाने के चक्कर में, चेहरा छिल- छिल जाता था
दूध दही उबटन बेसन, नींबू कुछ काम न आता था
पक्के रंग लगाने वाले, अब कब वह हमजोली जी
4
अब बूढ़े हैं दो हर घर में, बच्चे बाहर रहते हैं
गुमसुम रखी हुई पिचकारी, रंग नहीं कुछ कहते हैं
कहॉं दीखती हुड़दंगी, घर में घुस आती टोली जी
कहॉं दीखती अब वह मस्ती, बचपन वाली होली जी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 999761 5451