कहीं रिम झिम फुहारें हैं
कहीं रिम झिम फुहारें हैं, कहीं तूफां का मंज़र है
कहीं गुल खिलते उल्फत के, कहीं ग़म का समन्दर है
है कुदरत ने विचारा क्या, कहें मनसूबे क्या उसके
बरसता है कहीं अमृत , कहीं हाथों में खंज़र है
© Dr.Pratibha ‘Mahi’
कहीं रिम झिम फुहारें हैं, कहीं तूफां का मंज़र है
कहीं गुल खिलते उल्फत के, कहीं ग़म का समन्दर है
है कुदरत ने विचारा क्या, कहें मनसूबे क्या उसके
बरसता है कहीं अमृत , कहीं हाथों में खंज़र है
© Dr.Pratibha ‘Mahi’