कहीं तुम खूँ बहाना मत
(विधाता छंद)
मापनी 1222 1222 1222 1222
पदांत- मत
समांत- आना
कभी टूटे हुए दरपन, से’ घर को तुम सजाना मत.
कभी टूटे हुए तारों, से’ सब को तुम मिलाना मत.
कभी मत आजमाना तुम, कभी मत मान जाना तुम,
कभी खातिर बदौलत ही, किसी को तुम सताना मत.
कभी करना तो’ सजदा बस, खुदा के दर पे’ दीवाने,
कभी सर हर किसी के दर, कहीं भी तुम झुकाना मत.
कभी देखे समंदर क्या, मुहब्बत में फना होते,
कभी भी चाँद की खातिर, यह’ जीवन तुम मिटाना मत.
कभी ‘आकुल’ मिटाना हो, तो’ खातिर देश की मिटना,
कभी नापाक राहों पर, कहीं खूँ तुम बहाना मत.