कहानी ….
कहानी ……….
कहानी कहाँ नहीं है
जिन्दगी की हर परत में कसमसाती
कोई न कोई कहानी है
कल्पना की बैसाखियों पर
यथार्थ की हवेलियों में
शब्दों की खोलियों में
दिल के गलियारों में
टहलती हुई
कोई न कोई कहानी है
पत्थरों के बिछौनों पर
लाल बत्ती के चौराहों पर
बसों पर लटकी हुई
रोटी के लिए भटकती हुई
आँखों के दरीचों में टहलती
कोई न कोई कहानी है
सच! इन्सान की जिंदगी में
आदि से अन्त तक
हर बीते कल में
हर छूटे मोड़ पर खड़ी
कोई न कोई कहानी है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित