**** कहानी माँ की ****
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माँ तो केवल माँ होती है
कभी धूप तो कभी छाँव
कभी कठोर तो कभी नम
खुद तपती धूप को सहकर
हमें आँचल में छुपाती है
आप गीले में सोकर हमें
शीत कहर से बचाती है
खुद जिंदगी का जहर पीके
हमे अपना अमृत पिलाती है
पता नहीं माँ खुद मरमर के
हमें कैसे जिलाती है ।
हम भूल जाते हैं जब खुद
अपने कदमों पे चलते हैं
कलेजा माँ का जलता
हम चैन से सोते है ।
कभी लिपटे रहते थे
माँ के आँचल से ….आज
बीबी के आगोश में सोते हैं
बांटते है माँ की ममता को
खुद गैर होकर रहते हैं ।
ज़रा याद करलो उसको जो
कभी मैला धोती थी तुम्हारा
बस इतनी थी माँ की……..
पुरानी कहानी …….
अब सुनों …आधुनिक माँ
की कहानी……मेरी जुबानी
आजकल माँ बनना फैशन
बन गया लगता है क्योंकि
विवाह होते ही दुल्हन को
टेंशन होने लगती है कहीं
मै जल्दी माँ न बन जाऊं
इसी फेर में जाने अनजाने
वो कितनी ……अजन्मी
हत्याऐं कर देती है धीरे-2
अभ्यस्त होती जाती है
ममता मरी जाती है और
वो जन्म देने के बाद भी
माँ नहीं बन पाती है…
…………इसीलिए
दस दिन पहले जन्मे बच्चे
को तपती धूप में विथ मनी
सड़क पर अकेला छोड़ जाती है
और उम्मीद करती है किसी ओर
से कि किसी की ममता जगे और
वह उसे अपने घर की रौनक बना
लें ।।..क्या यह सम्भव है ? …
** ,?मधुप बैरागी