*”ममता”* पार्ट-4
गतांक से आगे. . .
दादीजी और राजेश ने उनसे इस घटना को विस्तार से बताने का आग्रह किया तो महात्मा जी ने सभी लोगों को शांति से बैठने का इशारा किया और ध्यान लगाने लगे, लोग भी इस वार्ता को सुनने के लिए इस तरह से बैठे मानो मूर्तियाँ रखी हो, कोई आवाज नहीं. कुछ क्षणों में महात्माजी ने आँखे खोली और एक गहरी सांस लेकर बाले…
सेठजी बहुत समय पहले एक गाँव में एक बहुत बड़े साहूकार हुआ करते थे. उनके एक बेटे की बहू थी जो एक संस्कारवान पिता की पुत्री थी. साहूकार जी का उस पूरे इलाके में बड़ा नाम था, उनके घर में नौकर चाकर की कोई कमी नहीं थी. मगर सेठजी किसी नौकर के हाथ का पानी नहीं पीते थे. इसलिए उनकी बहू उनके लिए रोज कुएं से पानी भर कर लाती थी. उसके साथ में हमेशा एक हम उम्र नौकरानी रहती थी, जो बाकि सब के लिए पानी लाती थी. इस कारण दोनों आपस में अच्छी सहेलियाँ बन गई. दोनों ने एक एक पुत्र को जन्म दिया. उन दिनों में सेठाणी खुद पानी लाती थी. कुछ समय बाद फिर से वही यानि पानी लाने का कार्य पुनः शुरू हो गया. बहू के पुत्र को तो सेठाणी जी घर पर रख लेती थी मगर नौकरानी को तो अपने पुत्र को साथ में ले जाना पड़ता था. दोनों सहेलियाँ एक दूसरे से बातें करते पानी लाती थी, और बाकि घर के काम में भी वे अक्सर साथ ही दिखती थी. एक बार की बात है, वे दोनों कुएं पर पानी भरने के लिए गई, रोजाना की तरह नौकरानी का पुत्र उसके साथ ही था. पानी भर के जैसे ही उसने मटका उठाया तो मटका फूट गया. बहू ने उससे कहा जल्दी जाकर दूसरा मटका ले आ. वो बच्चे को ले जाने लगी तो बहू ने उसे रोक दिया, और कहा इसे यहीं सोने दे तू जल्दी से मटका लेकर आ जा. मैं इधर बैठी हूँ. नौकरानी जल्दी जल्दी घर की तरफ दौड़ी. थोड़ी देर में बच्चा उठ गया और रोने लगा. शायद भूख लगी थी, बहू ने रास्ते की ओर देखा नौकरानी नजर नहीं आई, बच्चे का रोना जारी था तो उसने मुंह फेर कर बच्चे को अपना दूध पिलाना शुरू कर दिया. जब तक बच्चा दूध पीता उसकी माँ आ गई, उसने देखा उसकी मालकिन उसके बच्चे को दूध पिला रही है. जैसे ही बहू की नजर उस पर पड़ी तो उसने हंस कर बच्चे को अलग किया और दोनों पानी भर कर घर की ओर चल पड़ी.
उस वक्त उस कुएं की मुंडेर पर इन तीनों के अलावा दो पक्षी और थे जिनका ध्यान बच्चे के रोने की वजह से उस ओर गया. सेठजी आज की घटना की कड़ी उसी दिन की घटना के साथ जुडी हुई है. क्रमशः…