*”ममता”* पार्ट-3
गतांक से आगे…
अगले दिन शनिवार था, इसलिए राजेश को भी छुट्टी थी, दिन भर सब अपने अपने काम में व्यस्त थे. शाम को 5 बजे दोनों पति-पत्नी पड़ौसी दादाजी के घर जाने के लिए जैसे ही घर से निकले तो उन्होंने देखा कि दादाजी के घर के आगे भीड़ जमा हो रही है, तब उन्हें याद आया कि बात तो कल ही फ़ैल गई थी पुरे मौहल्ले में, इसलिए आज सब लोग देखने के लिए जमा हुए हैं. सरिता को लज्जा आने लगी. वे दोनों घर के अन्दर आये तो दादाजी, दादीजी सहित कई मौहल्ले वालों को इन्तजार करते पाया. राजेश ने सभी बड़ों का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया और अन्य का हंस कर अभिवादन किया. एक बैंक मेनेजर होते हुए भी वो अपने संस्कारों का पालन कर रहा है इसी बात को लेकर लोग मन ही मन उसकी प्रशंसा कर रहे थे. दादीजी ने बहू को बाल्टी दी और गाय के पास जाने का आदेश दिया, सरिता ने इशारों में इतने लोगों की उपस्थिति के बारे में पूछा तो उन्होंने इशारों में ही अनदेखा करने का इशारा किया. जैसे ही सरिता गाय के पास पहुंची गाय के हाव-भाव बदल गए ऐसा लग रहा था मानो वो उसी का इन्तजार कर रही थी. सरिता ने पिछले दिनों की तरह जैसे ही बाल्टी रख कर गाय दुहने का प्रयास किया सबने देखा थनों से दूध अपने आप निकलने लगा. सभी लोग (पुरुष, महिलाएं, छोटे बड़े) अचम्भे में आ गए.
इस माहौल में कब बाल्टी भर गई पता ही नहीं चला मगर दूध अभी भी आ रहा था, किसी ने घर के अन्दर से दूसरी बाल्टी लाकर गाय के नीचे रखी तो वो भी भरने लगी, कोई तीसरी बाल्टी ले आया फिर भी दूध बंद नहीं हो रहा था. लागों को चिंता होने लगी कि गाय को कोई बीमारी तो नहीं लग गई है. तभी जोर से आवाज आई “अलख निरंजन” लोगों ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक महात्मा खड़े थे. पूछने पर भीड़ ने उन्हें पूरी बात बताई, वे फिर बोले “अलख निरंजन” इस बार गाय का बछड़ा जो शांत खड़ा था वो उस अलख निरंजन की आवाज की तरफ देख कर मचलने लगा. लोगों का आश्चर्य और बढ़ गया इस दौरान तीसरी बाल्टी भी भरने लगी तो महात्मा जी ने जोर से आवाज लगाईं “बेटी बाल्टी हटा लो, दूध अपने आप बंद हो जाएगा” सरिता ने जैसे ही बाल्टी हटाई सचमुच थनों से दूध आना बंद हो गया. इतना दूध देने के बाद भी गाय के थन भरे हुए थे, मानो उसकी और दूध देने की इच्छा है. और महात्मा जी को देख कर उस बछड़े की उछलकूद और तेज हो गई. महात्मा जी गौशाला में आये उन्होंने बछड़े के सिर पर जैसे ही अपना हाथ रखा वो पहले की तरह शांत हो गया. अब तो लोगों के आश्चर्य की कोई सीमा ही नहीं रही. दादाजी ने महात्मा जी को बड़े ही आदर के साथ घर के भीतर बुलाकर उचित आसन दिया और इस घटना के बारे कुछ बताने का आग्रह किया.
महात्माजी दादाजी के इस अनुग्रह पूर्वक व्यवहार से बड़े प्रसन्न दिखे, उन्होंने कहा यजमान ये एक बहुत पुरानी घटना का प्रतिफल है बल्कि यूँ कहूँ कि ये किसी पिछले जन्म की एक घटना का प्रतिफल है तो ज्यादा सही रहेगा. क्रमशः …