कहानी मन की…..
सब ठीक चल रहा था
सहसा
कुछ अजीब
अलग
क्या
पता नहीं।
ऐसा जिसने
बैचेनी ला दी
ऐसी उलझन
सुलझाए न सुलझे
शायद सुलझे
कब
पता नहीं।
हर रोज़
नयी सुबह
वही यादें
वही उलझन
मन को झकझोर दे
क्या करूँ
मैं क्या करूँ?
सोचती
सब अच्छा होगा
कैसे
पता नहीं।
नहीं
कुछ करना होगा
क्या
पता नहीं।
क्या मैं सही हूँ?
सही राह पर जा रही हूँ?
पता नहीं क्यों
दिल की आवाज़ है
सही हूँ
मैं सही हूँ।
कितना मुश्किल है
उहापोह भरे दौर में
मन की करना
अपने फैसलों के लिए लड़ जाना
किसी से भी
चाहे कोई हो
घरवाले या बाहरवाले
कितना ज़रूरी है
किसी को छूट देना
पूरी छूट
सही हो तब
कर लेगी
वो कर लेगी
कुछ न कुछ
ज़रूर कर लेगी
अपने पैरों पर
छोड़ के तो देखो
फिर कहेगी दुनियाँ
सही थी
वह सही थी
बिल्कुल सही थी।
——-सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)