कहानी न पूछो
बुझी आग से जिंदगानी न पूछो।
लहर से कदम की निशानी न पूछो।
किया कत्ल जिसने गले से लगा कर-
उसी से प्रणय की कहानी न पूछो।
लहर ने जगाया भँवर ने सुलाया-
प्रणय के पथिक से रवानी न पूछो।
पढ़ो जिल्द सारा खुला बस पथिक का-
रुका अक्स पर दर्द पानी न पूछो।
नहीं याद कब बूँद सावन गिरा था-
हवा कब चली थी सुहानी न पूछो।
गुजरता रहा यह सफर जिंदगी का-
मिटी मौज-मस्ती जवानी न पूछो।
नहीं था बहर मौन मिथलेश पहले-
मगर किस लिये बेजुबानी न पूछो।