“कहानी-जुलूस”
जुलूस(कहानी)
भारत में संतों, समाज सुधारकों, आध्यात्मिक गुरुओं व योग गुरुओं की एक लंबी परंपरा रही है। ऐसे संतों व धर्म गुरुओं की कमी नहीं है, जिन्होंने स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। आजकल कुछ बाबाओं व साधुओं के कारण संत परंपरा कलुषित होती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण राजनीति लोगों का इनके साथ लगा होना भी है,जिससे इनकी ताकत बहुत ज्यादा हो जाती है।ये लोग भोली-भाली जनता की आँखो पर अन्धविश्वास कि ऐसी पट्टी बाँध देते हैं कि इंसान को चाहकर भी अपना भला-बुरा कुछ भी दिखाई नहीं देता। इन लोगों की कितने ही लोग इनके झाँसे में आकर गलत कदम उठा लेते हैं।
बाजार में बहुत भीड़ लगी थी। चारों ओर लोग ही लोग दिखाई दे रहे थे। इसी भीड़ में अधेड़ उम्र की स्त्री अपनी पड़ोस की महिलाओं के साथ बाबाजी के समागम में आई थी।उसे क्या पता था कि अब बाबा के पाप का घड़ा भर चुका था और आज बाबा की कुत्सित मनोवृतियों व घृणित कार्यों के चलते उसे पुलिस पकड़ने आ रही हैं।
पंडाल में नारे लगाए जा रहे थे बाबा जी की जय हो, बाबा जी की जय हो।सभी लोग समागम में चल रहे प्रोग्राम का आनंद ले रहे थे।आज बाबा ने लोगों को अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए बुलाया था।भक्त व समर्थकों के साथ-साथ पंडाल में बाबा ने गुंडे भी बुला रखे थे, जो बाबा के एक इशारे पर हुड़दंग मचा सकें।
थोड़ी देर में पुलिस आ जाती है और बाबा के पंडाल पर धावा बोलती है। बाबा जोर-जोर से माइक में चिल्ला रहा है,” यह विरोधी पार्टी वालों की चाल है, जो मुझे पकड़ने के लिए पुलिस आई है।”आप सब जानते हैं कि मैं निर्दोष हूँ।
पुलिस का सामना करने के लिए उसी पंडाल ने जुलूस का रूप धारण कर लिया और देखते ही देखते चारों ओर हाहाकार मच गई। भीड़ को संभालने के लिए पुलिस को आंसू गैस गोले व डंडे बरसाने पड़े। पानी की बौछार भी करनी पड़ी। जिसके चलते बहुत सारे लोग भीड़ में कुचले गए और बहुत लोगों को चोटे लगी। लगभग पचास के करीब लोगों की मृत्यु भी हो गई।
इसी भीड़ में उस अधेड़ उम्र की स्त्री की बहू व उसके पोते की भी मृत्यु हो गई।अधेड़ उम्र की एक बुढ़िया को बेहोशी की हालत में किसी ने घर पहुँचा दिया। होश आने पर दहाड़े मार-मार कर रो रही थी और कह रही थी,” हाय!मेरी वजह से मेरी बहू वह पोते की जान गई है।”” मैं भी जिंदा नहीं रहना चाहती।”” मुझे भी उठा लो भगवान! मुझे उठा लो।”आस-पड़ोस की महिलाओं से पूछने पर पता चला ” पड़ोस से बहुत सारे लोग पाँच-सौ,पाँच- सौ रुपए के लालच में किसी धार्मिक समागम में गए थे,जहाँ भगदड़ के चलते इसकी बहू और पोते की मौत हो गई है।”
बेचैन सा मन इस घटना को जानकर बस यही कह रहा था “काश! वह अधेड़ उम्र की स्त्री अपने पोते और बहू को लेकर बिना जाँच-परख के वहाँ ना जाती।” “काश!इतने सारे लोग जो अंधविश्वास के चलते जुलुस का हिस्सा बन बैठे ना बने होते, तो आज चारों ओर जो मौत का तांडव हुआ है वह ना हुआ होता।”
✍माधुरी शर्मा ‘मधुर’