कहानी- “खरीदी हुई औरत।” प्रतिभा सुमन शर्मा
कहानी- “खरीदी हुई औरत।”
प्रतिभा सुमन शर्मा
मुंबई
सुबह से शाम तक अपने खेतों में खटती पूनम आज न जाने क्यों डंडा लेकर पति के पीछे भागे जा रही थी। वह कहे जा रही थी कि “चल कुछ तो कर ले खसम। अब तो कर ले। मैं एकेली कब तक खटती रहूँ खेतों में? खेत तेरे बाप जादाओं के, जमीन तेरी और शादी हुई तबसे मेहनत मैं कर रही हूं। तू क्या बस गाँव के चौपाल पे बैठे हुक्का गुडगुड़ायेगा? बस हो गया अब मेरी हड्डियां भी जवाब देने लग गयीं। अब तो हाथ बटाले।”
जवानी में ब्याही मैं तेरे घर आई तो जैसे घर मेरा ही इंतेजार कर रहा है ऐसा लगा मुझे। सास ससुर को भी एक नई नौकरानी मिल गयी बहु के रूप में। कि चलो, अब खाट पर ही सब मिला करेगा। पती जिसकी शादी न हुई लड़कियों की कमी के चलते तो मुझे खरीद लाया कुल एक लाख रुपयों में।
शादी की पहली रात ही पति के रेप कि शिकार हुई। और सुबह सबने मुझे सुहागरात की मुबारकबाद दी। पति को तो जैसे रोज रात जबरदस्ती करने की लॉटरी लग गयी। बहुत दिन देखा फिर एक दिन मैं भाग गयी. पड़ोस के गाँव में। वहाँ एक खाली घर मे दुबकी बैठी रही न खाने को रोटी न पानी फिर । एक दिन बाहर निकली वहाँ से, तो एक औरत भली मानस आयी मेरे पास और उसने मेरी अपनेपन से पूछताछ की । मैन भी सब सच बता दिया। फिर उसने मुझे कुछ दिन अपने पास रख लिया। एक दिन मुझसे नंबर लेके मेरे पति को फ़ोन किया। मेरा पति आते ही मुझे कूटने लगा। उस भली औरत ने उसे समझाया अगर इसको अपनी घरवाली बनाके रखना चाहता है तो भले मानसात का तरीका सीख ले l तेरी ही औरत है तू रात रात भर उससे बद्तमीजी करेगा तो वह क्यो सहेगी ? भूल जा की तू उसे खरीद के लाया है जैसे भी लाया हो पर अब तो वो तेरी घरवाली है l बुढापा भी उसी के साथ कटेगा कि कोई और आयेगी? बैल की तरह घरवाला सिर्फ मुंडी हां हां में घुमाता रहा ।
नई शादी पहनाकर दोनों को साथ भेज दिया l फिर से जाते वक्त वह कहना न भूली कि तेरा कोई हो न हो मैं तो हूँ। जब भी यह पीटे, बदतमीजी करे मेरे घर आ जाया कर। यह तेरा मायका समझ ले।
मैं घर वापस गयी तो मुझे सास ससुर ने खरी खोटी सुनाई खूब पीटा। ढोर डंगर के जैसे। एक लाख क्या तेरा बाप देगा लाके ?
पर फिर रात आयी मुझे धुगधुगी मची हुई थी। आधी रात हुई पर खसम न आया उस रात। सुबह सुबह आया, आया क्या दारू में धुत दरवाजे में पड गया ।
मैंने उसके मुंह पर पानी मारा। थोड़ा होश में आते ही बहुत जोश दिखाने लग गया । आधी नीम बेहोशी में बोला- मेरे दोस्त बोल रहे थे तूने घर वाली वैसे भी खरदिकर लायी है थोड़ी हमारे साथ भी मिलबाँट कर खाया कर। मैंने कहा- सालो मेरी घरवाली है चाहे जैसे भी मैने लायी है वह मेरी है सिर्फ मेरी। खबरदार जो कभी इस तरह की बात की। आज से मैं तुम्हारा दोस्त नहीं मुझे तुम जैसों की दोस्ती नहीं चाहिए।
मैंने सोचा जैसा भी हो चाहे मुझसे बदतमीजी भी करता हो तो भी यह आदमी मेरे बाप से तो अच्छा है। उसने तो अपनी खुद की बेटी को बेच दिया। चाहे जो हो उसके साथ। पर इस आदमी ने मेरी इज्जत का इतना तो ख्याल रखा की मुझे और लोगों को नही परोसा।
उसने जैसा भी हो मेरा पति तो मेरा देवता है वाली तर्ज पर उसकी सेवा करना शुरू किया। अपने सास ससुर की भी मर्जी रखी, उनकी भी खूब सेवा की। पति को भी खूब प्यार दिया। सर चढ़ा पति दिनभर दोस्तों में हुक्का गुगुड़ाता बस। दिन भर बैठना इधर कभी उधर और चौपाल पर बैठकर हुक्का गुडगुड़ाना। सारा काम घर से लेकर खेतों तक का सारा काम ही पूनम ने संभाल लिया पर कही कोई सुख का शब्द उसे न मिलता। घर मे सास ससुर की इतनी सेवा के बाद भी गाली मिलती और सोते समय पति कान में कहता खरीदी हुई! खेतों में जाओ तो औरते उसे देखकर एक दूसरे को च्यूंटी काटती और कहती, देख वो आयी खरीदी हुई, नत्थू की घरवाली!ऊपर वाले कि मर्जी हुई और उसने दो बेटे दिए सोने सोने। फिर बच्चों को बड़ा करने में सास ससुर की सेवा में घर और खेत की देखभाल में दिन यूं फ़ुर्र से उड़ गए और अब पूनम के भी कनपट्टी पर सफेद बाल झांकने लगे। बच्चे भी कंधे बराबर हो गए। अब बच्चे भी कॉलेज जाने लगे। माँ के काम मे हाथ कौन बटाएगा? न पति न बच्चे न सास ससुर न गाँव वाले। खरीदी हुई औरत रात दिन अकेली काम ढो ढो के थक जाती।
एक दिन हुआ यूं पड़ोस की गाँव में जो उसकी मानी हुई माँ थी वह उसे मिलने आईं सास ससुर ने तो घर सर पर उठा लिया। कि यह कौन है? जो न तेरी माँ है न कोई सगी। यह क्यों मुँह उठाये तेरे से मिलने आ गयी?
उसके घर में उसे उसकी बहू ने घर से बाहर निकाल दिया था। उसने सोचा था कि बस थोड़े दिन आकर पूनम के पास चुपचाप आकर रहूंगी तो सब की अकल ठिकाने आ जायेगी। पर जो बेइज्जती हुई। जाते जाते बोली पूनम तू खरीदी हुई है इस खतीर तू इनके लिए अपनी चमड़ी के जूते भी बनाकर देगी तो भी बोलेंगे थोड़े सख्त है नरम होने चाहिए थे। बाकी तू है और तेरी जिंदगी। और वह चली गयी।
या बात पूनम को खाती रही बहुत दिनों तक। पति वैसे ही बिना काम का गाँव में घूमता रहता और हुक्का गुडगुड़ाता फिरता चौपाल पर। बच्चे अपनी दुनियां में मस्त। सास ससुर इतने बूढ़े होने के बावजूद उनकी हुकूमत चलाने की आदत बिल्कुल पहले जैसी ही थी।
एक दिन पूनम खेतों में जा रही थी रास्ते मे फिर वही एक औरत ने दूसरी को कोहनी मार कर कहा वो आ रही है खरीदी हुई, नत्थू की घरवाली… और खरीदी हुई औरत फिर अपने खेतों के कामों में जुट गई फिर न जाने क्या मन में आया पूनम ने उनको पलटकर जवाब दिया बोली हां हूँ खरीदी हुई तो तुम क्या हो? तुम भी तो मुझसे अलग नहीं दिख रही हो मुझे ? जो जो काम मैं करती हूं तुम लोग भी तो वही करती हो। अगर खरीदी हुई का मर्द वेला घूमता है तो तुम्हारे मर्द कौन सा खेतोँ का काम करते है? वा भी तो मेरे मर्द के साथ ही बैठे रहते है चौपाल पर ? और तूम्हारे सास ससुर कौन से तुम पर फूल बरसाते है? वह भी तो तुम्हारी जूतों से ही पूजा करते है? अरे मैं खरीदी हुई हूँ तो तुम क्या अलग हो ?
पर देखो अब जो मैं काम करुँगी तुम लोग न कर सकेगी। यही फर्क है बस खरीदी हुई और तुममें। और पूनम बाजरा पीटने का डंडा लेकर भागी। वह औरते भी उसकी टोह लेने भागी की यह डंडा लेकर क्यों कर भागी ? उसके पीछे पीछे भागती गयी।
पूनम चौक पर आके अपने मर्द को देखते ही उस पर डंडा चलाने लगी, दिनभर कामचोर इधर से उधर उधर से इधर भागता फिरता है ! मैं खरीदी हुई सारा तेरा परिवार संभालु सारे दिन खेतोँ के काम संभालु और तू बैठके सिर्फ खायेगा? क्यों? क्यों कि तूने मेरे माँ बाप को एक लाख रुपये दिए थे? क्या अब तक ब्याज ही न खत्म हुआ तेरा? तेरे बच्चे बड़े किये मैने। तेरे माँ बाप की सेवा की मैंने। अभी तक मेरा एक लाख रुपैये का हिसाब ही चुकता नहीं हुआ क्या ? बोल,बोल… सारा गाँव खरीदी हुई का गुस्सा देखकर डर गया था उस दिन। और आदमी जो भागा… सीधे खेत में…बच्चों की घिग्घी बन गयी दादा दादी के साथ ही।
और अब सीना चौड़ा कर के चल रही थी खरीदी हुई पूनम।
और भागे भागे फिर रहे थे वेले हुक्का पीने वाले। क्योंकि उनकी घरवालियों ने भी डण्डा थाम लिया था। पूनम ने सबको एक नई राह दिखा दी थी।