कहानी-कत्थई गुलाब (पहलाअंश)
शाम हो गई थी।सुलेखा माँ की राह देख रही थी।सड़क की तरफ देखने के लिए वो टेरिस पर आ गई। ।अचानक उसकी नज़र गुलाब के गमले पर गई।
अरे,,,आज कत्थई गुलाब के पौधे में पहला कत्थई गुलाब खिला था।
एक पल को उसका मन गुलाब-सा खिल गया।शाम और भी प्यारी लगने लगी।शाम और गुलाब का समायोजन उसे हमेशा से अच्छा लगता है।
एक बार निरंजना ने उससे पूछा था-“तुझे शाम इतनी अच्छी क्यूँ लगती है,तेरा चेहरा शाम होते हीं खिल सा जाता है,,,शाम में क्या है ऐसा,बता तो”,,,
निरंजना उसकी सबसे प्यारी सहेली है।कई सालों से उन्होंने एक दूसरे को अपना हमराज़ बनाया हुआ है।
निरंजना बड़ी प्यारी है,पर कभी ,किसी बात पर गंभीर नहीं होती,,सुलेखा का स्वभाव इसके ठीक विपरीत है।
सुलेखा की पहचान हीं है,उसकी गंभीरता,,उसकी उदासी,,जिसे दुपट्टे की तरह हर वक्त ओढ़े रहती है वो।