कहानी-आखिर कब तक?( भाग दो)
कहानी-आखिर कब तक?( भाग दो)
समय अपने पंख लगाकर उड़ रहा था। सोनिया और दीपक अपने मकान में शिफ्ट हो गए और उनके बच्चे भी स्कूल जाने लगे थे। मकान खरीदने के तीन बर्ष पश्चात ही सोनिया की सास ने अल्टीमेटम दे दिया कि अब वो और पापाजी अकेले नहीं रह सकते।
सोनिया की आँखों के सामने वही अतीत तैरने लगा जब वह सास ससुर के साथ उनके घर में रहती थी,तो बात बात पर उलाहने दिये जाते थे,एक बार सोनिया ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की,तो उसको दिसम्बर माह की ठिठुरती सर्दी में घर से बाहर निकलने को बोल दिया गया,बिना इस बात की परवाह किये,कि वो आठ माह की गर्भवती थी। उस समय दीपक ने किसी तरह सम्भाला था।
वो यह भूल नही पा रही थी,कि सास ससुर दोनों उसकी आँखों के सामने जूस-फल सब खाते रहते थे,यदि सोनिया कभी फल को हाथ भी लगाती,तो उसको धिक्कार दिया जाता था।
जब वह दूसरे शहर गए,तो वहाँ भी आरम्भ में आर्थिक तंगी के कारण सोनिया अपना ध्यान नही रख पाई थी।
इन सब का असर उसके स्वास्थ्य पर पड़ा और छोटी छोटी कई बीमारियों ने उसके शरीर को अपना घर बना लिया था।
अचानक फ़ोन की घन्टी ने उसका ध्यान भंग किया। दीपक ने उनके घर जाने और कुछ दिन वहाँ रहकर उनको साथ लाने के लिये वापसी की टिकट भी बुक करा दी थी।
चूंकि उनका दो बेडरूम का एक छोटा फ्लैट था इसलिये डाइनिंग हॉल को बच्चों के कमरे में बदल दिया गया ताकि बच्चों का कमरा सोनिया के सास ससुर को दिया जा सके।
सोनिया ने उन लोगों के साथ नए सिरे से शुरूआत करने को स्वयं को तैयार कर लिया था।
अगले दिन उन लोगों को जाने के लिए सुबह सुबह निकलना था,इसलिये एक दिन पहले ही सोनिया ने सारी पैकिंग कर ली थी। उसी
रात दीपक के पास उनकी माँ का फ़ोन आया कि उनकी बेटी यानी सोनिया की ननद उनको अपने साथ रखना चाहती है और उनकी रुचि अपनी बेटी के साथ रहने में ज्यादा दिखी।
सहसा ही दीपक का दिमाग ठनका।
दीपक की बहन दीपक से लगभग उम्र में दस वर्ष बड़ी थी। अठारह् वर्ष की आयु में उसका अंतरजातीय प्रेम-विवाह हुआ था।
उसका पति एक लोभी और जालसाज व्यक्ति था और दीपक की बहन भी उस रंग में ढल चुकी थी। दीपक के मातापिता पर उनका रंग इस तरह से चढ़ चुका था कि आये दिन उनको महँगे जेबरात और उपहार दिए जाने लगे। धीरे धीरे उन्होंने अपना धन उन पर लुटा दिया था,अब केवल एक मकान ही बचा था,जिस पर उनकी बुरी नज़र थी।
उनको डर था यदि दीपक के मातापिता दीपक के साथ रहने लगे,तो वह आसानी से मकान नही हड़प पाएंगे। इसलिये आए दिन वह दीपक के मातापिता के कान भरते रहते थे।
दीपक के बहनोई पर बैंक का बहुत कर्जा चढ़ चुका था और उसका मकान भी गिरबी पड़ा था। दीपक चूँकि अपने बहनोई से लगभग इक्कीस वर्ष छोटा था,उन्होंने दीपक को अपनी चाल में फ़साने का षड़यंत्र रचा और अपने रिश्ते का वास्ता देकर अपना कर्ज दीपक पर ट्रांसफर करने की बात की। दीपक उनकी चाल को भांप गया था और उसने उनके साथ बातचीत को पूर्णतः बंद कर दिया।
दीपक और सोनिया अपने बच्चों के साथ अगले दिन वहाँ जाने के लिये रवाना हो गए,
दीपक ने अपने मातापिता को समझाने की बहुत कोशिश की,परन्तु दीपक की माँ का बदला हुआ रूख देखकर उनका अपने साथ चलना कैंसिल कर दिया। और कुछ दिन वहाँ रहकर अपने शहर वापस आ गए।
दीपक की बहन अपनी चाल मे कामयाब हो चुकी थी और एक माह बाद ही उनदोनों को अपने घर ले गयी।
उनके मातपिता ने दीपक को फ़ोन करना भी बंद कर दिया था।
कुछ महीने पश्चात, दीपक को अपने पड़ोसियों से पता चला कि दीपक के मातपिता ने उसकी बहन और बहनोई के साथ मिलकर वह घर बेंच दिया था और उसकी भनक भी दीपक को नही लगने दी थी।
स्वार्थ और लोभ की आँधी इन रिश्तों को बहुत दूर उड़ा कर ले गयी थी,जहाँ प्यार और अपनापन की कोई जगह नहीं थीं।
दीपक और सोनिया का उद्देश्य सिर्फ अपने बच्चों को अच्छी तालीम देना और उनमें अच्छे संस्कार की नींव डालना था,ताकि बड़े होकर वह सही दिशा की ओर अपने कदम बढ़ाकर अपनी अच्छाई की छाप छोड़ सके।
By:Dr Swati Gupta