कहां हो बापू ( गांधी जयंती पर विशेष )
कहाँ हो बापू !
हाथ जोड़कर करती है,
भारतमाता ये फ़रियाद।
कहाँ हो बापू की मुझे ,
आ रही है तुम्हारी याद।
तुम गए जबसे हे बापू !,
मेरा भाग्य मुझसे रूठ गया।
पहले गैरों ने लूटा मुझको ,
अब अपना ही लूट गया।
कितनी महा-मारियों से ग्रस्त हूँ ,
नाम किस-किस के गिनवायुं ।
मैं बहुत दुखी हूँ प्यारे बापू !
अपने ज़ख्म कैसे दिखलायुं।
मेरे अंग-भंग का गम लेकर ,
तुम तो जहाँ से चले गये।
और तुम्हारे जाने के बाद ,
कई अरमान दिल में रह गए।
तुमने जो देखे थे सपने ,
मेरे विकास व् खुशहाली के।
वो तो न पुरे हुए एक भी ,
वक़्त गुज़ार रहीं हूँ बदहाली के।
महंगाई व् भ्रष्टाचार से ,
आम जनता हो रही पस्त ।
उस पर हिंसा ,आगजनी से ,
आतंक छाया है ज़बरदस्त।
रह-रह कर बैचैन करती हैं ,
बेबस /कमज़ोर लोगों की चीखें।
आलम यह है की हर सु मुझे ,
बस उनके अश्क़ ही दिखें।
हे बापू ! क्या कहूँ मैं तुम्हें ,
मेरी बेटीओं का दर्द नहीं सहा जाता।
उनके ज़ख्म ,उनकी आहें ,
उनका फटा आँचल नहीं देखा जाता।
मेरी फरियाद सुनो बापू !
बस एक बार तो लौट आओ।
मेरे भाग्य-विधाता ,हे पिता !
बिगड़ी मेरी संवार जाओ।
खुद नहीं आ सकते गर तुम ,
तो बस इतनी कृपा ही कर दो।
तुम्हारी मातृभूमि से ही जन्में है ,
माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी,
कर्मठ ,समर्पित ,सच्चे युगपुरुष व,
देशभक्त ,उनको दो अत्यधिक बल ,
उनमें अपनी शक्ति का संचार कर दो।