कहां हो तुम
ढूंढते हैं यहां वहां तुम्हें,पाते नहीं निशां तुम्हारा,
मुड़ कर भी ना देखा तुमने, तुम बिन क्या है हाल हमारा।
रोज़ हीं संदेशा भेजती हूं मैं, रोज़ हीं भेजूं पाती,
बैरन हवायें,महकी फिजायें क्या मेरा संदेशा तुम तक नहीं लाती।
सुबह की सुरज की किरणों को देती हूं मैं पैगाम,
जा-जा किरणें जाकर के पिया को मेरा दे सलाम।
बारिश की बरसती बुंदे जब धरती को महकाती है,
कहती हूं बुंदों से कह दो पिया को, याद तुम्हारी आती है।
हवाओं में फ़ैली खुशबू जब-जब मेरे मन पर छाई,
मन हीं मन पुछा मैंने, क्या पिया को मेरी याद आई।
मंदिर में पूजा की थाली, और घंटी जोर से बजाई,
सुनकर फिजाओं में आवाज़, क्यों फिर भी मेरी याद ना आई।
हाथों में लगाकर महावर, मैं नदी के पानी में धो आई,
खुशबू मेरी महावर की, नदियां पहूंचा दो ना कोई।
पैरों में पायल की छम-छम ,जब बाजे धीरे से,
याद पिया की सलोनी सुरत, आती मुझको हौले-हौले से।
हाथों में कंगना मेरे , है जब -जब कभी भी खनके,
सोचा करुं मैं क्यों मेरे पिया का, दिल कभी ना धड़के।