कहां से दुआओं में असर आए।
अपनी जिन्दगी का एक उसूल है।
जो भी खुदा से मिले वो कबूल है।।1।।
काफिरों से जा कर कोई कह दो।
इक मुहम्मद ही खुदा के रसूल है।।2।।
उनकी यादो में दिल बड़ा रोता है।
पुराने ज़ख्म ए इश्क हुए नासूर है।।3।।
इब्तिदाए इश्क नज़रों से होता है।
इस दिल का क्या इसमें कुसूर है।।4।।
जहां में कमी हर इंसा में होती है।
तभी तो वह बे वफा हमें मंजूर है।।5।।
कहां से दुआओं में असर आए।
जब जिन्दगी गुनाहों में मशगूल है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ