कहां जीवन है ?
जीने के सब सामान जुटे
पर इनमें कहीं न जीवन है ।
बीत रहे दिन काल चक्र संग
रुका हुआ पर मेरा मन है ।
नहीं कोई बाधा है पथ में
जीवन में सब सतत प्रवाह ।
कुछ तो सिमटा पर अन्तस में
मिलती है न जिसकी थाह। ।
खुशियां हैं कुछ छद्म वेश में
इस मन को हरषाने आयीं ।
मन भी है बच्चे सा जिद्दी
न इसे छद्मता छल पायी ।
ये जीवन प्रहसन जीने को
कितना भौतिक सामान जुटा ।
जग रीतों की इस वेदी पर
जीवन का सब आह्लाद लुटा ।
जब अभिनय का होता मंचन
सब देखें उसको भाव विह्वल ।
पर इस झूठे जग मंचन में
मन का अस्तित्व हो गया विकल ।
जीवन प्रत्याशा छिन्न हुई
बस सांसों का व्यापार बचा ।
उल्लास सरलता खोई सब
बस जीवन में अभिनय ही बचा ।