कहां जायें
घर में जंग
बाहर दंगे
कहां जायें
जहां लोग न हो नंगे
अंधे हैं सब
इन्हें कुछ खूबसूरत दिखता नहीं
लूले लंगड़े हैं सब
प्यार की नेक राह इनकी
मंजिल का रस्ता नहीं
सुनने को रह गया है
चारों तरफ
बस चीख पुकारों का शोर
क्या कहना चाहता है कोई
इससे सुनने वाले का न कोई
वास्ता है
मुद्दा क्या है
लड़ाई क्या है
इसकी न कहीं चर्चा है
गरम पानियों के छींटे
उछाल उछाल कर
एक दूसरे को जला रहे
बस एक शोले में सुलगती चिंगारी
की तरह
भड़के पड़े हैं
क्या कहना है
क्या पाना है
कहां जाना है
कैसे जीना है
इससे बेखबर
इनका न कोई ध्येय
न जीवन जीने का तरीका
सही, ईमानदार और
सच्चा है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001