कहां गया वह मेरा पेड़
कहां गया वह मेरा पेड़
जिसको नाजो से पाला था |
कहां गई उसकी हरी पत्तियां,
जिस की छांव में बचपन गुजारा था |
ठंडी -ठंडी हवा कहां है,
वह जो इसके झूले पर मिलती थी |
दिल की प्यास बुझाने को हर पल,
सुकून शांति जिसकी छांव में मिलती थी |
कोयल मोर पपीहा जहां पर राग सुनाते थे,
बारिश से बचने को छतरी यह पेड़
बन जाते थे |
गिलहरी की उथल-पुथल को हम
देखा करते थे ,
कहां गए वह पेड़ जहां पर फल फूल
हुआ करते थे |
बारिश में वह नाचते थे,
गर्मी में सहनशील वह बाली बन जाते थे|
सारे न्याय सारे फैसले उसके
नीचे ही होते थे ,
बूढ़ी मां के बच्चे खाना खाकर वही तो
सोते थे
मेरे दादा ने उसको अपने हाथों से बोया था,
कहां गया वह पेड़ जहां मैंने बचपन अपना खोया था |
खेल खिलौने सब उसके घरोंदे मैं होते थे,
ताश के पत्ते दादा के तितर-बितर होते थे |
मैं शहर बस कुछ दिन लिखने पढ़ने को आया था,
क्या पता कौन था जिसने मेरे पेड़ को काट जलाया था|
घर के बाहर अब मुझको ना अच्छा
लगता है,
मेरा पेड़ पता नहीं किसके चूल्हे में
जलता है |
जिसने मीठे आम दिए, अपनी गोदी में रखकर मां जैसी छांव का आंचल दिया |
कहां गया वह मेरा पेड़, जिसने कभी ना खुद के लिए कुछ लिया |
मेरे दादा मेरे पापा और मेरे बीच की
डोरी थी,
कहां गई उसकी मुड़ी लताएं जिस पर चिड़िया होती थी |
तनाव थकान बीमारी को
वही तो हटाता था ,
मेरा पेड़ सबके लिए बापू बन जाता था |
अब उसकी मिट्टी पर खड़ा में तन्हा बैठा हूं
ढूंढते -ढूंढते थक गया हूं ,
नई शुरुआत करने पौधा फिर बोने बैठा हूं |
मेरे बच्चों के बच्चे शायद उस पर झूलेंगे ,
फिर से कभी ना कभी कोयल मोर पपीहा मेरे आंगन फिर बोलेंगे |
किसी ना किसी को यह फिर छाया पहुंचाएगा,
मेरा पौधा जल्द ही फिर पेड़ बन जाएगा |
मेरा पौधा जल्द ही फिर पेड़ बन जाएगा……
हर्ष मालवीय
एमकॉम द्वितीय वर्ष
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल