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7 Jul 2023 · 1 min read

कहां गए (कविता)

सुबह सुबह जो ची ची करती, छोटी चिड़िया गई कहां।
हर बारिश में कू कू करती, काली कोयल गई कहां।
बारिश में दे सोंधी खुशबू, अब बो मिट्टी गई कहां।
धूप खिली जो आसमान में, उड़ती तितली गई कहां।
ऊंचे ऊंचे बिल्डिंग टॉवर ,चांद सितारे छिपे कहां।
अब है कमरा AC बाला, हवा सुहानी गई कहां।
उगा रहे है कांटे पल पल, खुशबू फूलों की गई कहां।
बहती नदियां नीला सागर, मछली जल से गई कहां।
धरती को वीरान बनाया ,महकी हरियाली गई कहां।
आग बरसती तपता जीवन, बहती शीतलता गई कहां।
निर्मम हत्याएं जीवों की ,सबकी मानवता गई कहां।
प्यासी धरती,सिमटे पर्वत और सिसकियां हैं बची यहां।

माता से रिश्ता तोड़ेंगे, हम मंगल पर बस जाएंगे।
आने वाली पीढ़ियों में ,हम कपूत कहलाएंगे।
पर्यावरण को बेच कर, हरे नोट कमाएंगे।
इन हरे नोटों से ,हरियाली नहीं पाएंगे।
प्रगति के नाम पर, प्रकृति को बेच आएंगे।
प्रकृति से प्रगति है ,कब समझ पाएंगे।

जन जीवन ,जीव जंतु,आजाद हवाएं जाएंगी ।पर्यावरण के नाम पर बस, कविताएं रह जाएंगी।
मंच होगा ,प्रपंच होगा सांसे खरीदी जाएंगी।
पर्यावरण के नाम पर वस कविताएं रह जाएंगी।,

Language: Hindi
1 Like · 215 Views
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