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11 Jun 2024 · 1 min read

कहां कहां ढूंढू तुझे मैं गज़लों में,

चंद बातें यहां, चंद ख़्वाब हैं हँसते,
मैं हूँ एक आवाज़, विचारों के अनंत सागर में!!
कविता के गीत, सुरमयी धुन में सजाते,
ह्रदय को मन मोह देते, रूह को बहलाते!!
कहां कहां ढूंढू तुझे मैं गज़लों में,
मेरी हर सांसों में, जज़्बातों में बसते जाते………..

शब्दों की चमक, सबल मंज़िल पाते,
समय के माथ चूमते, कल्पनाओं को फैलाते!!
संवेदना के बंधन बांधे, आनन खोलें चांद सितारे,
लहरों की मुस्कान लिए, बस निगाहों को चुराते!!
कहां कहां ढूंढू तुझे मैं गज़लों में,
मेरी हर सांसों में, जज़्बातों में बसते जाते………..

अमर रूप धारण कर, भावना को निर्मित करते,
वीरता की मूल, सरस सुरेख लिखते जाते!!
आगे बढ़ते, कला को सपने की देकर इजाज़त,
अपनी अविस्मरणीय कविता के रंग में रंग जाते!!
कहां कहां ढूंढू तुझे मैं गज़लों में,
मेरी हर सांसों में, जज़्बातों में बसते जाते………..

यात्रा करते, निरंतर निर्माण करते,
ज़िन्दगी की सुंदरता, प्रेम शगुन में घूंघट पहनाते!!
विचारों का मंथन, मन की आजादी से चलते,
प्रकृति की प्रेरणा, मनमोहक काव्य को सँवारते!!
कहां कहां ढूंढू तुझे मैं गज़लों में,
मेरी हर सांसों में, जज़्बातों में बसते जाते………..

धरोहर बनते, काव्य के आपदें सहते,
साहित्यिक उद्गम को गूँथते हैं मित्रता से!!
गीतों से सजे रुपक, उसे पढ़कर अमर बनाते,
कविता की गाथा को, सात वचनों में सजाते!!
कहां कहां ढूंढू तुझे मैं गज़लों में,
मेरी हर सांसों में, जज़्बातों में बसते जाते………..

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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