कहाँ से कहाँ आ गये हम
कहाँ से कहाँ
आ गये हम
जवानी से
बुढापे की
दहलीज
तलक आ गये
कहाँ से
कहाँ आ गये
थे पहले गेंद
मुलायम
आज फुटबॉल
हो गये
पैरों की
ढोकर खाने को
मजबूर हो गये
कहाँ से
कहाँ आ गये
हम
थी पहले
शान चेहरे पर
आज पीकदान
हो गये
कहाँ से
कहाँ आ गये
मूँछों से सिर
तलक थे
बाल काले
आज सफेदी
के मुँहताज
हो गये
कहाँ से
कहाँ आ गये
महफ़िल में
कभी कद्रदान
हुआ करते थे
हम
आज कूड़ेदान
हो गये
कहाँ से
कहाँ आ गये
हमारे ख्यालात
दकयानूसी हो गये
हम अपनो से ही
किनारे हो गये
कहाँ से कहाँ
आ गये
रखा था साथ
बच्चों को
पंख मिलते ही
वो उड़
आसमां गये
कहाँ से
कहाँ आ गये हम
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल