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8 Feb 2017 · 1 min read

कहाँ मैं थोक हूँ मैं भी तो यार खुदरा हूँ

मुझे निहार ले क़िस्मत सँवार सकता हूँ
फ़लक़ से टूट के गिरता हुआ मैं तारा हूँ

कहाँ ये मील के पत्थर मुझे सँभाले भला
पता था गो के इन्हें रास्ते से भटका हूँ

सिसक रहा है कोई मुस्कुरा रहा है कोई
न मुस्कुरा ही सका मैं न सिसक पाया हूँ

मेरी भी हो न हो बढ़ जाए कोई शब क़ीमत
कहाँ मैं थोक हूँ मैं भी तो यार खुदरा हूँ

ख़बर सुनी तो सही तूने ज़माने से भले
यही के इश्क़ में तेरे मैं कैसे रुस्वा हूँ

जो मुझसे आज मुख़ातिब है यह भी कम है कहाँ
भले ही कहता रहे तू के मैं पराया हूँ

नहीं चुभे है चुभाए भी ख़ार ग़ाफ़िल अब
मैं इतने ख़ार भरे रास्तों से गुज़रा हूँ

-‘ग़ाफ़िल’

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