कहाँ पर रहते हो
कहने को दिल बसते हो
पर तुम कहाँ पर रहते हो
सागर जैसी गहराई तुम्हार
जिसमें लहरों बन मैं उठती हूँ
बार बार छू कर तुमको
न जाने क्यूँ मचला करती हूँ
सपने सुहाने दिखला कर
मन विचलित करते हो
कहने को दिल बसते हो
पर तुम कहाँ पर रहते हो
सागर जैसी गहराई तुम्हार
जिसमें लहरों बन मैं उठती हूँ
बार बार छू कर तुमको
न जाने क्यूँ मचला करती हूँ
सपने सुहाने दिखला कर
मन विचलित करते हो