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28 Nov 2021 · 1 min read

कहाँ थे ज़िन्दगी में हम।

कहाँ थे ज़िन्दगी में हम और कहाँ आ गये |
ना जाने कब कैसे हम गर्दिशे जहाँ पा गये ||1||

अब अपनों से वह निस्बत रही ना हमारी |
तभी तो रिश्तों मे हम इतनी दूरियाँ पा गये ||2||

जानें कहाँ गया वो हँसना मेरी ज़िन्दगी का |
ना जानें कब गुरबतों के ये आसमाँ छा गये ||3||

खुदा ने बक्शा था हमें भी नगीना इश्क का |
वह पहली ही नजर में थे दिलों जाँ भा गये ||4||

बिगड़े पलों का जिम्मेवार मै किसको मानूं |
ज़िन्दगी में ये सब तो खाँ मों खाँ आ गये ||5||

उनके बिन तो गुजरता ना था इक भी लम्हा |
फासलें जाने कितनें हमारें दरम्याँ आ गये ||6||

छूटा था जो हमसे यूँ बदकिस्मती से हमारी |
आज वो अपनी जिन्दगी में मेहरबाँ पा गये ||7||

कैसे बचता मैं अपने कातिलों से शहर में |
वो मेरे पैर से बहते हुऐ खूँ के निशाँ पा गये ||8||

बटवारा हुआ जब जायदाद का हमारे घर |
मैं ही बदनसीब था पर भाई मेरे माँ पा गये ||9||

तू भी चल ताज अपने घर को अब वो देख |
दूर के परिन्दें शाम अपने आशियाँ आ गये ||10||

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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