कहाँ थे ज़िन्दगी में हम।
कहाँ थे ज़िन्दगी में हम और कहाँ आ गये |
ना जाने कब कैसे हम गर्दिशे जहाँ पा गये ||1||
अब अपनों से वह निस्बत रही ना हमारी |
तभी तो रिश्तों मे हम इतनी दूरियाँ पा गये ||2||
जानें कहाँ गया वो हँसना मेरी ज़िन्दगी का |
ना जानें कब गुरबतों के ये आसमाँ छा गये ||3||
खुदा ने बक्शा था हमें भी नगीना इश्क का |
वह पहली ही नजर में थे दिलों जाँ भा गये ||4||
बिगड़े पलों का जिम्मेवार मै किसको मानूं |
ज़िन्दगी में ये सब तो खाँ मों खाँ आ गये ||5||
उनके बिन तो गुजरता ना था इक भी लम्हा |
फासलें जाने कितनें हमारें दरम्याँ आ गये ||6||
छूटा था जो हमसे यूँ बदकिस्मती से हमारी |
आज वो अपनी जिन्दगी में मेहरबाँ पा गये ||7||
कैसे बचता मैं अपने कातिलों से शहर में |
वो मेरे पैर से बहते हुऐ खूँ के निशाँ पा गये ||8||
बटवारा हुआ जब जायदाद का हमारे घर |
मैं ही बदनसीब था पर भाई मेरे माँ पा गये ||9||
तू भी चल ताज अपने घर को अब वो देख |
दूर के परिन्दें शाम अपने आशियाँ आ गये ||10||
ताज मोहम्मद
लखनऊ