कहाँ जाते हैं वो लोग
अपनो से रूष्ट होकर
आंखों में अश्रु देकर
स्मृतियों को छोड़कर
मित्र परिचितों को भूलकर
अपना देह त्यागकर
इस धरती से..
कहाँ जाते हैं वो लोग…
माँ बाप के हृदय में पत्थर रखकर
कोई स्त्रिविहीन तो कोई अनाथा होकर
नन्हे शिशुओं का सुख छीनकर
उस घर की चौखट से
कहाँ जाते हैं वो लोग…
कुछ जाना तो नही चाहते …
लेकिन कुछ जाते हैं विवश होकर
न चाहते हुए भी जाना पड़ता है अपनो से दूर
जहां से वापस आने का कोई उल्लेख नहीं है….
वो जाकर वापस आने की सोचते तो होंगे
सब कुछ एक पल में जब छूटे होंगे
उस व्यथित आत्मा को लेकर
आखिर कहाँ जाते हैं वो लोग…