कहाँ चल दिए
हमको बदनाम कर के कहाँ चल दिए
मजनू सरेआम कर के कहाँ चल दिए
इस तरह तुम न भीगो युँ बरसात में
पानी को जाम कर के कहाँ चल दिए
पहले भी आई आँधी पर ऐसी ना थी
ख़ुद को इल्ज़ाम कर के कहाँ चल दिए
इस तरह से ना ज़ुल्फ़ को खोलो यहाँ
सुबह को शाम कर के कहाँ चल दिए
जिसने देखा तुम्हे अब तक मदहोश है
ये क़त्ल ए आम कर के कहाँ चल दिए
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar / shayari