कहाँ गये वो दिन
विषय–चाय
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कहाँ गये वो दिन?
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वो दिन भी कितने सुन्दर थे।
हम तुम जब साथ में रहते थे।
हाथों में चाय की प्याली ले-
मन की बातों को कहते थे।।
अब बात नहीं वह साथ नहीं।
तुझ सा कोई मित्र पास नहीं।
कोई मित्र मिला न तुम जैसा-
अब चाय तो है वो मिठास नहीं।।
अब भी तो चाय मैं पीता हूँ।
एक तन्हा जीवन जीता हूँ।
अब जीवन मेरा उधड़ गया-
उधड़े जीवन को सीलता हूँ।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार