**कहाँ गया वो युग**
कहाँ गया वो युग,
जब हर तरफ़ हरियाली थी।
बागों का श्रृंगार कोयल से,
और बच्चों की किलकारी थी।
अपने जीवन को मानव,
अपने हाथों से काटते हो।
वृक्ष लगाने का ज्ञान तुम,
क्या कभी बांटते हो।।
निज फ़ैलायी ऊष्मा में,
स्वयं आज तुम जल रहे।
तुम्हारी ही ग़लतियों से आज,
विश्व हिमखंड पिघल रहे।।
✒@शिल्पी सिंह