कहाँ गए वो दिन
कहाँ गए वो दिन
जब थे हम गजेट्स के बिन
माना काम करने में मन लगता था।
पर काम करने में अब न मन लगता है,
न ही किसी के बारे में सोचा जाता है।
अब तो रोज दिन मनते हैं,
जैसे पहले त्योहार मनाए जाते थे।
अब मत- पिता वृद्धा श्रमों में रहते हैं,
पर अब मदर्स डे और फादर्स डे मनाए जाते हैं।
अब तो हम फाइल के नामों में कैद
और रिश्ते व्हाट्स अप के भरोसे
कहाँ गए वो दिन
जब सुबह – सुबह त्योहारों के
बनते थे थोक के भाव में पकवान
क्योंकि अपना घर ही नहीं
तब पूरा मोहल्ला खाता था।
अब तो अपने घर में भी
पैकेट में बंद उपहार रूपी खजाना ही आता है।
– _मीरा ठाकुर _