कहाँ खोई माँ कोई खबर नहीं आती
प्रतियोगिता हेतु गजल
कहाँ खोई माँ खबर कोई नहीं आती
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कहाँ खोई माँ खबर कोई नहीं आती,
गगन भी देखा नजर कोई नहीं आती।
परी बन कर वो उडी तारों भरे नभ में,
पुकारा भी था मगर कोई नहीं आती।
झड़े सारे फूल आबाद गुलशन के,
बहुत सूना है नगर कोई नहीं आती।
हुआ यादों में बड़ा जब होश संभाला,
बड़ा रोता है जिगर कोई नहीं आती।
उजाले भी देख हारा यार मनसीरत,
गया अंधेरा पसर कोई नहीं आती।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)