कहाँ -कहाँ रखते
मेरी जुबान पर अरसे से पाबंदी थी आपकी
हमारी चाह थी अपनी बात को खामखा रख दें
आपके सामने बोलने पर जुर्म हो जाता
आप ही बताइये अपनी बात को कहाँ-कहाँ रखते
आपने मेरी बात न समझी और मुझे नकारा समझा
हमारी चाह थी आपके कदमों में सारा जहाँ रख दें
अँधेरे रास्ते आपको डराएंगे बहुत
कहिए तो रास्ते में एक समाँ रख दें
ग़र आपको पसंद नहीं है साथ मेरा
तो कहीं ले जाकर अपने आपको तन्हा रख दें
चाह है के एक बार मुझे सलीके से सुनिए
फिर हम आपके सामने सारा गिला शिकवा रख दें
अफ़सोस आपने मुझे मौका न दिया
थोड़े से वक्त में अपनी बात क्या -क्या रखते
-सिद्धार्थ गोरखपुरी