कहल झूठ हमर की ?
अनुज,जय जानकी
हे मातृधरा
विहर वीरन देस
बउक उदास
प्राचीन अभिलाषी
ओऽ पैघ स्नेहित
विहार मंठ वेदान्त हमारे
युग युग हे माँ भारत
जे जरल इतिहास
बबुऐ गामक
माए दिअ दरख अन्तिम
नुकी चौखट देखैत
तोर दर्शन अभिलाषी
कहल झूठ हमर, माँ ?
तोअ बाजै, चोट लागै
बबुआ केतए कानैए
कनिक उगल चानमे
तोए कनाबै काहे
लोरी गाबि जे माए
कहल झूठ हमर, कि ?
माँ तोँ नहि ताकैए
दुलरूआ देखे कानैए
लिअ उठा गोदिमे
जीवन धन्य होए जाए
कहल झूठ हमर, कि ?
—–श्रीहर्ष