कहर और सियासत
क्या कहना ऐसे जालिम लोगों का,
जो केवल खोखले दंभ ही भरते हैं,
कुदरत का कहर, महामारी जारी है,
इसपर भी लोग सियासत करते हैं।
मानव रक्षा करना इनका काम नहीं,
परोपकार इन्हें समझ नहीं आता है,
इन लोगों का तो कलुषित नेताओं,
सियासतदानों से ही गहरा नाता है।
चारो तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई है,
कुछ कहर से तो कुछ भूखे मर रहे,
इन बेशर्मों को शर्म भी नहीं आती,
इनकी लाशों पर राजनीति कर रहे।
सच्चे राजनेताओं को चैन नहीं है,
जो पलभर भी लेते नहीं आराम हैं,
जिन्हें राजनीति विरासत में मिली,
बस पैर खींचना ही उनका काम है।
कुदरती कहर या वैश्विक महामारी,
ये तो एक दिन समाप्त हो जाएगी,
ये जनता है जो सबकुछ जानती है,
देखना तुम्हें फिर सबक सिखाएगी।
?? मधुकर ??
(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’
ट्यूब्स कॉलोनी बारीडीह,
जमशेदपुर, झारखण्ड।