कहमुकरी
देख मुझे वह नित हरषाए,
मुझ पर अपनी जान लुटाए।
वह मेरा पक्का दीवाना,
क्या सखि साजन? नहिं परवाना।।1
मन को मेरे वे हैं भाते,
काया का सौंदर्य बढ़ाते।
बदले उनसे मेरे तेवर,
क्या सखि साजन?नहिं सखि जेवर।।2
तन का काला ख्व़ाब निराले,
कर्कश वाणी डोरे डाले।
मुझे न भाए मुआँ अभागा,
क्या सखि साजन? नहिं सखि कागा।।3
सरपट दौड़ पास वह आए,
जगह-जगह की सैर कराए।
फुर्तीला वह नहीं निगोड़ा,
क्या सखि साजन?नहिं सखि घोड़ा।।4
आकर पास करे जब चुंबन,
मिट जाती है हर एक थकन।
जन्म-जन्म का उससे नाता,
क्या सखि साजन?नहिं सखि माता।।5
पाकर उसको हर्षित मन से,
पोर-पोर वह लिपटे तन से।
उसके बिन मैं जाऊँ ताड़ी,
क्या सखि साजन?नहिं सखि साड़ी।।6
डाॅ बिपिन पाण्डेय