कहमुकरियाँ
कहमुकरियाँ…
आगबबूला सदा वह रहता
पारा दिन भर चढ़ा ही रहता
गरम मिजाज हठीला ठेठ
क्या सखि साजन ! ना सखि जेठ
सही-गलत क्या, वही सिखाए
मंजिल तक मुझको पहुँचाए
उस बिन रहे अधूरी नॉलेज
क्या सखि साजन ! ना सखि कॉलेज
जपूँ अहर्निश उसका नाम
मिले उससे मन को आराम
वही मुक्ति वही चारों धाम
क्या सखि साजन ! ना सखि राम
जब से मुआ विदेश से आया
संकट विकट साथ में लाया
अब तो पल-पल उसको रोना
क्या सखि साजन? नहिं ‘कोरोना’
-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)