कहने को हमसफर हैं
कहने को हमसफर हैं
मगर संग नहीं,
संग होता गर
और के संग
की तुम्हें दरकार ना होती ।
संग होता गर,
तो सच और झुठ
छुपम और छुपाई
का खेल ना होता ।
संग होता गर
कोई कुछ यूंंही
कह ना पाता ।
संग होता गर
मेरे अपमान पे
यूं ज्ञानेन्द्रियां बंद ना होती ।
कहने को हमसफर हैं
पर संग नहीं,
संग होता गर
तो दर्द का अहसास ना होता ।