कहने को बाकी क्या रह गया
जब से देखा तुम्हे मै कही खो गया
और कहने को बाकी क्या रह गया।।
तुम मिले ही नही मिलने की तरह।
नसीबा मेरा रूठता रह गया।।
और कहने को बाकी क्या रह गया
शायद ये पहले हुआ ही नही।
आज जो ये मेरे साथ हो गया ।।
और कहने को बाकी क्या रह गया।।
सांझ ढलती रही ,रात जाती रही,
तेरे इंतजार का दिया बुझ गया।
और कहने को बाकी क्या रह गया।
रातरानी खिली, आंगन महक गया।
तेरे आने से ये जहां मिल गया।
और कहने को बाकी क्या रह गया।
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा,उप