कहने का फर्क है
कहने का फर्क है,
हम अच्छे हैं या ,हम अच्छे हुआ करते थे।
हमने कभी किसी को गैर ना समझा,
इसीलिए शायद किसी ने हमें अपना न समझा।
जिंदगी तू क्यों इतनी उदास होती है,
जग में पूरी कब किसकी आस होती है,
कोई कहता है भगवान ने बहुत दिया,
दो वक्त की रोटी टूटने ना दी,
किसी को शिकायत है,
टैक्स की राशि लाखों में है।
कहने का सचमुच फर्क है,
सोच और कहने में भी फर्क है।