कहते हैं लड़कों की विदाई नहीं होती .
कहते हैं लड़कों की विदाई नहीं होती, उन्हें तो बस नौकरी की तलाश में घर छोड़ जाना होता है,
खामोशी की दुशाला ओढ़कर, अपनी किस्मत को आजमाना होता है।
बचपन के खेल भूलाकर, किताबों की दुनिया में खो जाना होता है,
आँखों से नींदों को त्याग कर, स्वप्नों का अलख जलाना होता है।
माँ के आँचल को छोड़ कर, यथार्थ की धारा को गले लगाना होता है।
जब तक कुछ ना कर पाओ, सुनाने को ताना सारा ज़माना होता है,
कुछ बनते हीं कन्धों पर आयी जिम्मेवारियों का, अलग हीं फ़साना होता है।
एक तरफ काम की चक्की में स्वयं का पीस जाना होता है,
दूसरी तरफ इंतज़ार में बैठी माँ की निराशा का आरोप हंसकर सुन जाना होता है।
समाज के नियमों के तहत अब घर भी बसाना होता है,
और विडंबना ऐसी भी होती है कि माता-पिता का घर अब बेगाना भी होता है।
उसे एक अच्छे बेटे के मापदंडों पर खड़े होकर अपना फ़र्ज निभाना होता है,
साथ हीं एक योग्य जीवनसाथी भी बनकर दिखाना होता है।
कभी अपने प्रेम का त्याग कर जाना होता है,
तो कभी आंसुओं को खुद से भी छुपाना होता है।
उसे हर परिस्थिति में खुद को साबित कर के दिखाना होता है,
और अपनी तन्हाई में अपने टूटे टुकड़ों को खुद हीं समेट जाना भी होता है।
लड़कों की विदाई नहीं होती, उन्हें तो बस नौकरी की तलाश में घर छोड़ जाना होता है,
खामोशी की दुशाला ओढ़कर, अपनी किस्मत को आजमाना होता है।