कहते हैं न….
कोई पिछड़ा
अपनापन ही
कोई बिखरा
वो भी अपनापन ही
लोग कहते हैं न
वो पराया है
साथ नहीं देंगे
कहते हैं उम्मीद है…
तो सब किरण भी
दीप ही जलती पर
बूझती भी है तो
सब ख़ाक !
जग को कहें
मैं कुछ नहीं
लेकिन सच में
मानों…
वो ही ख़ास
और कहे
सबकुछ तो आप
ये तो भाई
समझो
उनका बड़प्पन है
क्या है ज़माना!
जिनका हुँकार है
वहीं ज़िन्दा है
जिनका नहीं
है पर अस्तित्व नहीं
वो कोई कुछ भी नहीं
ताने निन्दा शृंगार
है पर, पर, है ही नहीं
भला क्या!
बस कहते ही है
कहता हूँ
बस सुना हूँ
पता है
तब ही कहता हूँ
नहीं तो
आजकल कहते लोग
कहाँ है…
बस रोड़ा बनते हैं
सहोदर में देखा
मैंने परायापन
हमसफ़र की सीढ़ी में
त्रिकोण कहां चौकोण कहां
बस रही वृत्ताकार
अब वो भी नहीं
बस-बस द्वि कोण
कहते हैं न
आभार या आधार
नव्य सृजन भी
वहीं विष वहीं है
सिर्फ बचा राख
मैली-सी, कलंक-सी
बंधते औरों को
ख़ुद न ब्रह्म सम्राट
कुछ और कहूँ
नहीं छोड़ों
थक गया हूँ
बस यहीं समझो
आकार न ही है
देखता हूँ सिर्फ़ प्रकार
लेखक :- वरुण सिंह गौतम
#VarunSinghGautam