कस्तूरी की तलाश (विश्व के प्रथम रेंगा संग्रह की समीक्षा)
कस्तूरी की तलाश (विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह) संपादक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
प्रकाशक : अयन प्रकाशन दिल्ली प्रकाशन वर्ष – 2017
पृष्ठ – 149 मूल्य – ₹ 300
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गूढ़ अर्थ ओढ़े बेजोड़ रेंगा – संग्रह ” कस्तूरी की तलाश ”
समीक्षक : – सूर्यनारायण गुप्त “सूर्य”
हाइकु सम्राट श्री प्रदीप कुमार दाश ‘ दीपक ‘ के महनीय प्रयास से संपादित भावभरित सम्भवतः विश्व का प्रथम हिन्दी रेंगा -संग्रह ” कस्तूरी की तलाश “जो मुझे समीक्षार्थ मिला , को पढ़ने का सौभाग्य मिला । पढकर मैं धन्य हो गया ।
जापान से चलकर भारत के साथ – साथ विश्व हाइकु साहित्य के आकाश में अपना अमिट छाप छोड़ता हाइकु का ही एक आकार- प्रकार ‘ रेंगा – छंद ‘ जो दो या दो से अधिक कवियों के पूरक सहयोग से त्रिपदी हाइकु छंद 05 + 07 + 05 को जोड़ते हुए इसमें + 07 + 07 वर्ण – क्रम के जुड़ाव से निर्मित पंचपदी रेंगा छंद का स्वरूप धारण करते प्रस्फुटित होती है । इसमें एक व्यक्ति द्वारा रचित हाइकु छंद में दूसरा या कभी – कभी तीसरा व्यक्ति ( साहित्यकार ) पूरक संदेशात्मक पंक्ति 07 + 07 को जोड़कर रेंगा छंद का रूप प्रदान करता है । इस पूरक जुड़ाव से निर्मित छंद जिसमें भावों की संपूर्णता का बोध हो तो वही छंद ही ज्यादे शुद्ध व ग्राह्य माना जाता है ।
प्रतिभा के धनी दर्जनाें कालजयी कृतियों के रचयिता , अनेक सम्मानों से विभूषित , अनेक साझा संकलनों के कुशल संपादक – रायगढ़ ( छ० ग० ) के निवासी , विश्व प्रसिद्ध आदरणीय श्री प्रदीप कुमार दाश ‘ दीपक’ जो हाइकु साहित्य में अपना एक अलग नाम व मुकाम बना चुके हैं , निश्चय ही बधाई के पात्र हैं ।
बदलते साहित्य के परिवेश के इस नये -नये प्रयोगवादी दौर में इस कालजयी संग्रह के सभी रेंगा छंद , जो इनके कुशल संपादन में 65 साहित्यकारों के पूरक सहयोग से संपादित है। निश्चय ही रेंगा साहित्य के लिए ‘ मील का पत्थर’ साबित होगा । भावी साहित्यकारों का मार्ग – दर्शन कराने में भी पूर्णतः सक्षम होगा । हाँ यदा कदा संग्रह में कहीं – कहीं वर्णों की सँख्या में घटाव – बढाव दिख रहा है , जो मेरे समझ से टंकण की त्रुटि हो सकते हैं । जिसे अगले संस्करण में ठीक कर लिया जाए तो अच्छा ही होगा । वर्तमान संस्करण में शुद्धि – अशुद्धि पत्र भी संलग्न किए जा सकते हैं ।
लौकिक / पारलौकिक अर्थ ओढ़े – ‘ सीप में मोती ‘ व ‘ गागर में सागर ‘ वाले मुहावरे को चरितार्थ करते ये हृदयस्पर्शी , सारगर्भित रेंगा छंद जीवन के मर्म – कर्म व धर्म को उजागर करते प्रतीत होते हैं । इनमें जीवन – दर्शन के भी बिम्ब का प्रतिबिंब प्रतिबिम्बित है । जीव व प्रकृति तथा देश – दुनिया के संपूर्ण शाश्वत सत्य का कथ्य व तथ्य को उकेरता यह रेंगा संग्रह ” कस्तूरी की तलाश ” आप को यशस्वी बनावे ।
हाइकु साहित्य – जगत में आपकी रचनात्मक सक्रियता श्लाघ्य है । मैं आपके इस प्रतिभा को सम्मान देते हुए आपको सलाम करता हूँ । ‘ सूर्य ‘ की सतरंगी करणें आपके जीवन – पथ को सदा आलोकित करती रहें । इसी कामना व भावना के साथ – साथ आप व पूरक समस्त सहयोगी साहित्यकारों को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ ।
सूर्यनारायण गुप्त ” सूर्य ”
ग्राम व पोस्ट – पथरहट ( गौरीबाजार )
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