कस्तूरी की तलाश (पाँच रेंगा)
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कस्तूरी की तलाश
( विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह )
अयन प्रकाशन दिल्ली
संपादक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
रेंगा क्र. 01
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जीवन रेखा
रेत रेत हो गई
नदी की व्यथा □ प्रदीप कुमार दाश दीपक
नारी सम थी कथा
सदियों की व्यवस्था □ चंचला इंचुलकर सोनी
सदा सतत
यात्रा अनवरत
जीवन वृत्ति □ अलका त्रिपाठी “विजय”
मृगतृष्णा समान
वेदना की तिमिर □ देवेन्द्रनारायण दास
तोड़ेगी स्त्री ही
फिर बहेगी धारा
करूणा बन □ डाॅ. अखिलेश शर्मा
लाँघो पथ सदा ही
हरो भव की बाधा □ रवीन्द्र वर्मा
अकथ्य पीड़ा
अनगिनत व्यथा
नारी नियति □ अल्पा वलदेव तन्ना
तृप्ति अतृप्ति कथा
नारी नदी की व्यथा □ अलका त्रिपाठी “विजय”
जीवन भर
नारी दौड़ती नदी
आशा के पथ □ देवेन्द्र नारायण दास
निर्मल श्वेत धारा
बाँध रही कु प्रथा □ अल्पा वलदेव तन्ना
बहो सरिता
नारी मन व्यथा सी
करो शुचिता □ रवीन्द्र वर्मा
गूँजेगा मधु स्वर
तरल होगी शिला । ■ डाॅ. अखिलेश शर्मा
–संपादक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”–01–
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रेंगा क्र. 02
शोक मनाते
पतझड़ में पत्ते
शाख छोड़ते □ प्रदीप कुमार दाश दीपक
नव कोंपल रुपी
नवल वस्त्र पाते □ पुरोहित गीता
फिर हँसते
हरे भरे हो जाते
वो मुस्कराते □ मनिषा मेने वाणी
प्रकृति चक्र पुनः
नव काया धरते □ किरण मिश्रा
शाखें पुरानी
नई आस संजोये
करें स्वागत □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
कोमल किसलय
बसंत सहलाते □ ऋता शेखर “मधु”
ज्यों जीर्ण शीर्ण
अवसान देह का
नव जीवन □ अलका त्रिपाठी “विजय”
प्रकृति का नियम
सत्य परिवर्तन □ नीलम शुक्ला
रचनाकर्म
संसार का नियम
सृजन धर्म □ डाॅ. अखिलेश शर्मा
उसका है करम
रख ले तू भरम □ हाॅरून वोरा
परिवर्तन
पुनः देह धरन
सुपल्लवन □ रवीन्द्र वर्मा
सूखा फिर हो हरा
जीवन सनातन ■ दाता राम पुनिया
संपादक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
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रेंगा क्र. 03
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धूप से धरा
दरकने लगी है
बढ़ता ताप □ प्रदीप कुमार दाश दीपक
मुख खोल बैठी है
मेघ बुझाओ प्यास □ नंद कुमार साव
तृप्ति की आस
वसुधा का विलाप
सूखी सी घास □ अल्पा जीतेश तन्ना
धधक रहा सूर्य
झेलें सभी संताप □ नीतू उमरे
तपती धूप
परेशान हैं सब
कोई न खुश □ धनीराम नंद
मौसम के तेवर
सहमे हम आप □ अविनाश बागड़े
सह न पाए
सूरज के तेवर
प्रचंड वेग □ डाॅ. अखिलेश शर्मा
कारण हम आप
काटे वृक्ष जो आज □ आर्विली आशेन्द्र
लूका
संतप्त पाखी
जल बिन उदास
चातक आस □ किरण मिश्रा
व्यभिचार गरल
पी रही मन मार □ अनिता शर्मा
तृषित धरा
बुझती नहीं प्यास
आस आकाश □ अलका त्रिपाठी “विजय”
कृषक का संताप
भविष्य अभिशाप । □ रवीन्द्र वर्मा
संचालक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
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रेंगा क्र. 04
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मन गुलाब
झुलसाती धूप ने
जलाये ख़्वाब □ प्रदीप कुमार दाश दीपक
कैसा ये आफ़ताब
चाहूँ मैं माहताब □ अविनाश बागड़े
ठंडी सी छाँव
खिलने लगे फिर
कली की आब □ सुधा राठौर
नेह घन लायेंगे
खुशियों का सैलाब □ मधु सिंघी
ढलेगी शाम
डोलेगी जो पुरवा
मिले आराम □ इन्दु सिंह
सूरज पिघलेगा
बुझेगी तब आग □ नीतू उमरे
मन क्रोधित
भविष्य का है ख़्याल
हाल बेहाल □ मनिषा मेने वाणी
तन तड़पे मीन
सूखे नयन आब ! □ किरण मिश्रा
तन तपन
चाहे शीतल छाँव
स्वप्न के गाँव □ रवीन्द्र वर्मा
धूप कर जा पार
ख़्वाब होंगे साकार □ पूनम राजेश तिवारी
मन है प्यासा
शोषित अभिलाषा
जीने की आशा □ डाॅ. अखिलेश शर्मा
दरकते रिश्तों को
संजीवनी की आस । ■ विष्णु प्रिय पाठक
संपादक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
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रेंगा क्र. 05
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मृग सा मन
कस्तूरी की तलाश
छूटा जीवन □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
ये आस बनी अरि
मृगतृष्णा गहरी □ अंशु विनोद गुप्ता
प्रयासरत
रहती हरदम
आशा न छोड़ी □ आर्विली आशेन्द्र लूका
मायावी अठखेली
स्व अबूझ पहेली □ चंचला इंचुलकर सोनी
धरी की धरी
अपेक्षाएँ गठरी
टूटा स्मरण □ अल्पा वलदेव तन्ना
लालसाओं के नाग
छोड़े नहीं दामन □ मीनाक्षी भटनागर
स्वयं से परे
भ्रम का बुना जाल
उलझा नादाँ □ शुचिता राठी
अंधकूप सी आशा
सदा मिलती निराशा □ मनोज राजदेव
लोभ अगन
अकुलाया सा मन
जलता तन □ इन्दु सिंह
थके पाँव फिर भी
अथक भटकन □ किशोर मत्ते
बिना थाप के
बजे यूँ चहुँ ओर
मन मृदंग □ गंगा पांडेय “भावुक”
तृषा का संवरण
मोक्ष प्रभु शरण । ■ किरण मिश्रा
प्रस्तुति : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”