कसूर
ना तो क़सूर है इसमे तेरा
ना ही क़सूर है इसमे मेरा
ये तो वक़्त ही करवट बदल गया
मिला उड़ती पँखो को नया सवेरा।
हर ज्ञानी ज्ञान को तिनका माने
खरे हीरे की क़ीमत जौहरि जाने
नियति से नियत का हो निर्माण
तूँ तेरी ये दुनियां ले ख़ुद पहचान।
था मासूम वो लम्हा चला गया
यहाँ मूर्ख अनुभव से छला गया
कल जो अपनत्व का सम्मान था
आज वही शब्द आत्मा जला गया।
ना तो क़सूर है इसमे तेरा
ना ही क़सूर है इसमे मेरा
ये तो वक़्त ही करवट बदल गया
मिला उड़ती पँखो को नया सवेरा।
© महेश कुमार