कसूर तो कुछ हमारा भी होगा
कसूर तो कुछ हमारा भी होगा??
सुनसान सड़के, वीरान बगीचे,
चारो ओर फैला सन्नाटा,
कमरे में बंद है लोग,
कसूर तो कुछ हमारा भी होगा।
बाँह में हाथ डाले घूमते थे ,
गले मिलके झूमते थे ,
आज पास आने से भी डरने लगे है,
कसूर तो कुछ हमारा भी होगा।
रहती थी जहां भीड़ भक्ति के दीवाने,
जलती आरतिया, होती अजाने,
मंदिर मस्जिद हो गए सूनसान ,
कसूर तो कुछ हमारा भी होगा ?
बढ़ चले थे हम जंगलो को काटकर,
निर्दोष जीवो को खूनी खंजर मारकर ,
आज सड़को में आकर मोर भी नाचने लगे है,
कसूर तो कुछ हमारा भी होगा।
विकास की दौड़ में भुलाकर,
घूमते रहे प्रदुषण बढ़ाकर
आज स्वच्छ चाँदनी फिर से दिखने लगी,
कसूर तो कुछ हमारा भी रहा होगा।