कसूरवान
कसूर है शायद मेरा,
कसूर है शायद इन आँखों का मेरी,
इन्हें तुझसे बेहतर कोई नज़र नहीं आता,
मस्तिष्क भी कसूरवान मेरा,
क्योंकि निजात तेरे ख्यालों से ये नहीं दिलवाता,
दिल है कसूरवान मेरा ,
जो हर हाल में है तुझे चाहता।
ये हँसी है मेरी कसूरवान,
जो आ जाया करती थी देख
इश्क़ की हार हर दफा बार – बार ,
अब आता है समझ मुझे,
ये मुद्दा हँसने का नहीं,
मगर करूँ भी तो करूँ क्या ???
ये मुद्दा रोने का भी नहीं,
हाल है ऐसा रोया नहीं जाता
ना खुलकर अब हँसा जाता है,
मेरा दिल है जो हर हाल में बस उसे चाहता है।
ये मसला है मजाक नहीं,
ये मसला है जलते कोहिले की राख नहीं,
जो आज के आशिक मिनटों में उड़ा देते हैं,
मिनटों में इश्क़ को अफवाह बना
पहले ही सब कुछ बिगाड़ देते हैं।।२
❤️ सखी